कबीर को याद करते
हुए इस ज़मीन पर कुछ लिखने की कोशिश की थी कभी ! आज कबीर जयंती के अवसर पर आपसे
साझा कर रहा हूँ अपनी वही कोशिश इस ग़ज़ल के ताने बाने में ~ 'हैं हम तो इश्क़ मस्ताने...' । शायद पसंद आये
~ प्रेम रंजन अनिमेष
हैं हम तो इश्क़
मस्ताने...
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हैं हम तो इश्क़ मस्ताने हमें है होशियारी क्या
मुहब्बत अपनी दुनिया है तो फिर ये दुनियादारी क्या
किसी के दुख में रो लेना सभी के साथ हो लेना
यही है ज़िंदगी अपनी हमारी क्या तुम्हारी क्या
ये पैसे पदवियाँ पहचानें अपने पास रख प्यारे
हमारा यार है हममें हमारी इनसे यारी क्या
हम आये देखने बाज़ार कुछ लेना न देना यार
नहीं जब शौक़ बिकने का नक़द चाहे उधारी क्या
दिया है दाँव पहला खेल में दिल के भरोसे पे
निकल जायेगा फिर लेकर दिये बिन मेरी बारी क्या
जो उसके होंठों से पाया चलो होंठों को दो लौटा
मिला कर रखना हर खाता रहे उल्फ़त उधारी क्या
ये ऐसा घाट है जिस पर है आना सबको ही आख़िर
यहाँ क्या आदमी औरत यहाँ राजा भिखारी क्या
हुआ जब ज़ुल्म औरों पे तो सब चुपचाप बैठे थे
है तारी कैसा सन्नाटा अब आयी अपनी बारी क्या
यहाँ कट जाता है वो सर जो करता उठने की जुर्रत
झुकी इन गरदनों की पर कोई मर्दुमशुमारी क्या
हूँ शायर सीधा सादा तो कहूँ सब सीधे सीधे क्यों
नहीं परिवार घर रखना नहीं है जान प्यारी क्या
है ख़ाली हाथ आना जब न कुछ भी साथ जाना जब
तो क्यों असबाब ये सारे महल कोठे अटारी
क्या
मुअय्यन मौत का है दिन ज़रा समझा इन्हें ग़ालिब
तो इतनी अफ़रातफ़री क्यों फिर ऐसी मारामारी
क्या
न कोई साज ना सामां बुलावा जब भी
आयेगा
चले जायेंगे ख़ुद पैदल कोई गाड़ी सवारी क्या
सहर मत झाँक कर देखो तुम अपने दिल से ये पूछो
कि हमने साथ मिलकर रात की क़िस्मत सँवारी क्या
नहीं हो आग सीने में न पानी आँखों का 'अनिमेष'
न धड़कन हो न सिहरन हो तो इस मिट्टी से भारी क्या
प्रेम रंजन
अनिमेष
संत कबीरदास के शब्दों की सच्चाई, सादगी, निर्भीकता, फकीरी और गूढ़ जीवन दर्शन को इस समय के सर्वाधिक समर्थ एवं संवेदनशील कवि प्रेमरंजन अनिमेष ने कबीर की शैली में जीवंत कर डाला है| अनिमेष की इस रचना में अद्भुत प्रवाह है |
जवाब देंहटाएंभाई की कविता सूफ़ी की कविता लगी 💐
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