कुछ व्यस्तताओं के कारण 'अखराई' एवं उसके सहयोगी ब्लॉग ‘बचपना' पर हर महीने अपने रचना संसार से कुछ चुने हुए मोती साझा करने का वर्षों से चला रहा अटूट सिलसिला पिछले कुछ महीनों थमा रहा । अब समय है उस क्रम को फिर से आगे बढ़ाने का ! बहुत धन्यवाद इस बीच याद करने और याद कराने के लिए कि यह यात्रा सतत अनवरत चलती रहनी चाहिए ।
इस बार अपने आनेवाले कविता संग्रह ' माँ के साथ ' से आकार में
छोटी परंतु भाव प्रभाव संभाव में बड़ी कुछ कवितायें प्रस्तुत कर
रहा हूँ
प्रेम रंजन अनिमेष
उपस्थिति
गेंदड़े में
खुँसी है
सुई
माँ होगी
यहीं कही...
संसार का सबसे बड़ा झूठ
µ
ईश्वर के
बारे में
कोई कहता
तो क्या पता
मान भी लेता
शायद कहीं
इतनी
बेमानी सी
बेमतलब की
कोई
बात
आज तक
नहीं
किसी ने
कही
दुनिया का
सबसे बड़ा
झूठ है
यही
कि माँ
अब
नहीं
रही...
µ
( शीघ्र प्रकाश्य कविता संग्रह ' माँ के साथ ' से )
इसी की दृश्य श्रव्य प्रस्तुति इस लिंक पर देखी सुनी सराही जा सकती है :
✍️ प्रेम रंजन अनिमेष
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